सूची / अध्याय 3: स्थूल ब्रह्मांड
I. घटनाएँ और प्रश्न
हम किस दिशा में जा रहे हैं? पारंपरिक उत्तर तीन अतियों के बीच डोलते हैं—तेजी से बढ़ता शीत क्षय, सब कुछ चीर देने वाला महाविच्छेदन, या पलटकर गिरने वाला महासंकुचन। ये कथाएँ अकसर किसी वैश्विक मान्य पर निर्भर रहती हैं—जैसे एक अपरिवर्तित “कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टैंट”—पर यह कम समझाती हैं कि माध्यम कैसे काम करता है, संरचनाएँ ऊर्जा–हिसाब कैसे समेटती हैं और किसी निष्कर्ष तक क्यों पहुँचा जाना चाहिए।
इसके विपरीत, प्रेक्षण बताते हैं—गैलेक्सियाँ बुझती हैं, समूह विलय करते हैं, रिक्तियाँ फैलती हैं, ब्लैक–होल गतिविधि उठती–गिरती है। यह सब किसी ऐसी तनन–स्थलाकृति जैसा दिखता है जो धीरे–धीरे ढीली पड़ती और फिर से आरेखित होती है। इसलिए सवाल बनता है: अत्यन्त लम्बे समय में तनन, घनत्व, ऊर्जा–धागे और ऊर्जा–समुद्र संरचित ऊर्जा का लेखा–जोखा कैसे चुकाते हैं?
II. तंत्र: भविष्य को “तनन–स्थलाकृति” में लिखना
मुख्य विचार: दूर का भविष्य बाहर से खींची एक–पैरामीटर रेखा नहीं, बल्कि तनन–स्थलाकृति का दीर्घकालिक रूपांतरण है। यदि हम तीन खाता–बही सँभालें—भंडार, आपूर्ति, निर्गम—तो प्रवृत्ति पढ़ना सरल हो जाता है।
- भंडार: संरचित ऊर्जा का “तनन–खाता”
- कोई भी स्व–धारी संगठन—फिलामेंट–गुच्छ से लेकर समूह–नोड तक, डिस्क–प्रवाह से लेकर लॉक्ड कोर तक—एक तनन–रिसर्वायर की तरह व्यवहार करता है।
- जितना गहरा रिसर्वायर, उतनी अधिक कायम तनन और उतने सघन लूप; अवस्था बदलना उतना ही कठिन। यही ब्रह्माण्ड का संरचित ऊर्जा–भंडार है।
- आपूर्ति: तनन–गलियारों की “इनफ्लो–बही”
- लम्बी ढलानें और रिज़–रेखाएँ पदार्थ व तनन को नोडों की ओर पहुँचाती हैं और भंडार भरती रहती हैं।
- आरम्भ–मध्य युगों में प्रचुर सामान्य अस्थिर कण (GUP) औसतन एक भीतरी झुकाव जोड़ते हैं—ढलानों को मानो “मोटा” कर देते हैं और आपूर्ति स्थिर बनाते हैं।
- निर्गम: पुनः–संयोजन, जेट और तरंग–पैकेट की “डिसिपेशन–बही”
- कतरनी–पट्टियाँ और पुनः–संयोजन तनन को चलते–फिरते विक्षोभों में बदलते हैं; कोर–निकट यह विकिरण में रूपान्तरित होते हैं, दूर जाकर टेन्सर पृष्ठभूमि शोर (TBN) में मिलते हैं।
- लॉक्ड कोर सीमाओं पर “सीप” करते हैं और बहुत धीमे–धीमे तनन को समुद्र में लौटाते हैं।
- जब तक निर्गम शून्य नहीं होता, संरचित ऊर्जा थोड़ी–थोड़ी कर के निष्क्रिय पृष्ठभूमि में “रिडीम” होती रहती है।
इन खातों के संतुलन पर स्थलाकृति तीन व्यापक तालों में विकसित होती है:
A. कंकाल का बनना (निकट–मध्य काल)
- फिलामेंट सख़्त होते हैं, कुएँ गहरे, रिक्तियाँ बड़ी: विलय और आपूर्ति नोडों को मज़बूत करती है, दीवारें जोड़ती है, रिक्तियाँ फैलाती है; गैलेक्सियाँ स्थलाकृति की बाधाओं में बुझती हैं।
- भीतरी झुकाव बना रहता है: सांख्यिकीय टेन्सर गुरुत्व (STG) सघन क्षेत्रों में बाह्य डिस्क/हेलो को “अतिरिक्त सहारा” देता है।
- प्रसार–छत वातावरण के साथ बदलती है: तनन–विरोध समय–यात्रा और प्रकाश के अक्रोमैटिक विलंब में छाप छोड़ते हैं।
B. मोटाई और भंडारण (दूर का काल)
- गलियारे “सूखते” हैं, भंडार केन्द्रित होता है: मुक्त परिवहन घटता है, आपूर्ति आंतरायिक होती है; अधिक स्टॉक लॉक्ड कोर और मोटी दीवारों में जमता है।
- वैश्विक कंट्रास्ट मुलायम होता है: बड़े–पैमाने का भीतरी घटक घनत्व घटने के साथ कमज़ोर होता है; तरंगें लम्बी और समतल होती हैं; कॉस्मिक–नेट बाढ़ से अधिक कंकाल लगता है।
C. रिसाव और समुद्र–प्रत्यावर्तन (अत्यन्त दूर का काल)
- सीमा–रिसाव प्रमुख होता है: लॉक्ड कोर और उच्च–तनन क्षेत्र दीर्घजीवी पुनः–संयोजन व सूक्ष्म–रिसाव से तनन लौटाते हैं।
- ऊर्जा–लेजर में पृष्ठभूमि शोर हावी होता है: फैले, अनियमित तरंग–पैकेट प्रमुख ऊर्जा–रूप बनते हैं।
- प्रसार–छत समरूप होती है: जैसे–जैसे राहत समतल होती है, स्थानीय “गति–छतें” मैक्रो तौर पर नज़दीक आती हैं—यद्यपि हर स्थानीय मापन वही स्थानीय मान पढ़ता है।
दो अंतिम रूप—दोनों ही स्थलाकृतिक नियति
- समतल शीत–क्षय: यदि निर्गम निरन्तर खुला रहे और नया भंडार घटे, तो स्थलाकृति समतल होती जाती है। ब्रह्माण्ड कम–कंट्रास्ट धुंध में ढल जाता है जिसे पृष्ठभूमि शोर नियंत्रित करता है।
- मोज़ेक–पुनरुद्धार: यदि कुछ अतिगहरे नोड स्थानीय दहलीज़ पार करें, तो ब्लॉक–आधारित चरण–परिवर्तन व्यापक पृष्ठभूमि पर बिंदु–नुमा उच्च–तनन डोमेन “ताज़ा” कर सकते हैं। यह वैश्विक पलटना नहीं, बल्कि मोज़ेक–शैली में स्थानीय पुनर्जन्म है।
दोनों ही पट्टियों में कारण–श्रृंखला एक–सी है: भंडार भरा, जमा और छोड़ा जाता है; अंततः या तो परिदृश्य सम हो जाता है या टुकड़ों में नया हो उठता है। भविष्य किसी शाश्वत बाहरी स्थिरांक में नहीं, तनन–बहीखाते में लिखा है।
III. उपमा
अरबों वर्षों की ग्रह–स्थलाकृति: पहले पर्वत–श्रृंखलाएँ (नोड) उठती हैं और धाराएँ समेटती हैं; फिर नदियाँ उथली पड़ती हैं, स्रोत सूखते हैं। अंततः भूमि या तो पठार की ओर ढलती (समतल शीत–क्षय) है, या स्थानीय रूप से नई श्रेणियाँ उठती हैं (मोज़ेक–पुनरुद्धार)।
IV. मानक कथा के साथ तुलना
- साझा प्रश्न: क्या हम त्वरण में हैं; क्या शीत–अंधकार आएगा; क्या संरचना अब भी बढ़ रही है।
- भिन्न पथ: पारम्परिक प्रस्तुति नियति को वैश्विक खिंचाव और बाह्य स्थिरांक में लिखती है; यहाँ हम उसे माध्यम–संरचना–मार्गदर्शन में लौटाते हैं: तनन–स्थलाकृति का भंडार–आपूर्ति–निर्गम बताता है क्यों गैलेक्सियाँ बुझती हैं, जाल “कंकाल” बनता है, और अन्त में या तो समतलीकरण होता है या स्थानीय नवीनीकरण।
- विरोध नहीं, समानान्तर: कमजोर–क्षेत्र और निकट–मध्य समय पर अनेक लक्षण—विलय, बुझना, रिक्तियों का बढ़ना—दोनों चित्रों में आते हैं; फर्क कारण–भाषा में है: “बाहर से धक्का” नहीं, बल्कि स्थलाकृति के भीतर स्व–संगठन और रिलैक्सेशन।
V. निष्कर्ष
ब्रह्माण्ड का भविष्य, स्व–संगठन–भंडारण–रिसाव–समुद्र–वापसी की बहुत लम्बी कथा है, जो एक तनन–स्थलाकृति पर चलती है:
- पहले कंकाल, फिर मोटाई और जमा, अंत में रिसाव और वापसी;
- अंतिम दृश्य या तो समतल शीत–क्षय, या मोज़ेक–पुनरुद्धार;
- किसी शाश्वत बाह्य स्थिरांक की ज़रूरत नहीं—तीन पुस्तकों पर ध्यान रखें: भंडार में संरचित ऊर्जा, गलियारों की आपूर्ति, और पुनः–संयोजन/जेट/तरंग–पैकेट से होने वाला निर्गम।
संक्षेप में, ब्रह्माण्ड “अंत तक घसीटा” नहीं जा रहा। वह अपने ही माध्यम में, तनन के नियमों के अनुसार ऊर्जा–लेखा धीरे–धीरे संतुलित कर रहा है।
कॉपीराइट व लाइसेंस (CC BY 4.0)
कॉपीराइट: जब तक अलग से न बताया जाए, “Energy Filament Theory” (पाठ, तालिकाएँ, चित्र, प्रतीक व सूत्र) का कॉपीराइट लेखक “Guanglin Tu” के पास है।
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अनुशंसित श्रेय प्रारूप: लेखक: “Guanglin Tu”; कृति: “Energy Filament Theory”; स्रोत: energyfilament.org; लाइसेंस: CC BY 4.0.
पहला प्रकाशन: 2025-11-11|वर्तमान संस्करण:v5.1
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