परमाणु नाभिक न्यूक्लॉन (प्रोटॉन और न्यूट्रॉन) से बना एक स्व-समर्थित जाल है। ऊर्जा तंतु सिद्धांत (EFT) में प्रत्येक न्यूक्लॉन को स्वयं टिके रहने वाला “बंद तंतुबुंड” माना जाता है, जबकि अलग-अलग न्यूक्लॉन आसपास के माध्यम — ऊर्जा सागर (Energy Sea) — के द्वारा स्वतः खुलने वाले तनन-गलियारों से जुड़ते हैं। इन गलियारों के साथ-साथ दौड़ने वाली मरोड़ या सिलवट वाली तरंग-पुंजियाँ “ग्लूऑन-जैसी” आकृतियों की तरह दिखती हैं। यह दृश्यांकन मुख्यधारा के प्रेक्षणों से मेल खाता है और “अवशिष्ट रंग बल” की धारणा को “तनन-गलियारा” व “पुनर्संयोजन” की प्रत्यक्ष भाषा में रखता है।
I. नाभिक क्या है (तटस्थ विवरण)
- नाभिक, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से बनता है।
- प्रोटॉनों की संख्या तत्व को निर्धारित करती है; ऊर्जा तंतु सिद्धांत के आरेखों में प्रोटॉन लाल तथा न्यूट्रॉन काले दिखाए जाते हैं।
- तत्व और समस्थानिक, न्यूक्लॉनों की संख्या और जाल में उनकी विन्यास से भिन्न होते हैं। हाइड्रोजन-1 अपवाद है: उसका नाभिक अकेले प्रोटॉन का होता है, कोई अंतर-न्यूक्लॉन गलियारा नहीं रहता।
उपमा: प्रत्येक न्यूक्लॉन को कुंडी वाले बटन की तरह सोचें। ऊर्जा सागर दो निकट बटनों के बीच स्वयं एक किफ़ायती पट्टी “बुन” देता है और उन्हें जकड़ देता है। वही पट्टी तनन-गलियारा है।
II. न्यूक्लॉन “जुड़ते” क्यों हैं: तनन-गलियारे
- जब दो न्यूक्लॉनों के निकट-क्षेत्र के तनन-विन्यास एक-दूसरे पर ठीक बैठते हैं, ऊर्जा सागर न्यूनतम लागत वाले पथ पर गलियारा “तालाबंद” कर देता है और दोनों को जोड़ देता है।
- गलियारा न्यूक्लॉन से “खींचा” हुआ तंतु नहीं है; यह माध्यम की सामूहिक प्रतिक्रिया है जो सतह के “पोर्ट” पर लंगर डाले रहती है।
- गलियारे में बहने वाली फेज और फ्लक्स “ग्लूऑन-जैसी” पुंजियों के रूप में दिखाई देती है (आरेखों में छोटे पीले दीर्घवृत्त)।
उपमा: दो किनारों के बीच अपने-आप उठ आने वाला हल्का पुल सोचें; उस पर भागते पीले बिंदु आवा-जाही का प्रवाह हैं।
III. अल्प दूरी पर प्रतिकर्षण, मध्यम दूरी पर आकर्षण, दूर पर लोप
- अल्प दूरी – प्रतिकर्षण: यदि न्यूक्लॉन-कोर बहुत पास आ जाते हैं, तो निकट-क्षेत्र की बनावट दब जाती है और ऊर्जा सागर की शीयर-लागत उछल जाती है; असर “हार्ड-कोर” जैसा दिखता है।
- मध्यम दूरी – आकर्षण: उपयुक्त दूरी पर तनन-गलियारा सबसे सस्ता समाधान होता है, इसलिए खिंचाव प्रमुख रहता है।
- लंबी दूरी – लोप: नाभिकीय पैमाने से बाहर गलियारा स्वतः तालाबंद नहीं होता; आकर्षण तेज़ी से घटता है और समय-औसत में केवल कमजोर, लगभग समदिश “नाभिकीय उथला-कुण्ड” बचता है।
उपमा: बहुत पास रखे चुंबक धक्का देते हैं; थोड़ा दूर सबसे स्थिर होते हैं; और अधिक दूर होने पर खिंचाव नहीं रह जाता।
IV. खोल (शेल), जादुई संख्याएँ और युग्मन
- खोल: ज्यामितीय और तनन-बंधन के कारण न्यूक्लॉन पहले कम-लागत वाले “वलयों” को भरते हैं। एक वलय भरते ही समग्र कठोरता उछलती है और जादुई संख्याओं का चिह्न बनता है।
- युग्मन: स्पिन और किरैलिटी की जोड़ियाँ निकट-क्षेत्र की बनावट को बेहतर संतुलित करती हैं, इसलिए युग्मन-ऊर्जा मिलती है।
- प्रेक्षण: ऊर्जा-स्तरों में क्रमबद्ध सीढ़ियाँ और नाभिकीय स्पेक्ट्रम में नियमितताएँ उभरती हैं।
उपमा: थिएटर में हर घेरा भरते ही भीड़ स्थिर होती है; पड़ोसी दो सीटों पर जोड़ी बैठी हो तो डोलना और घटता है।
V. विकृति, सामूहिक दोलन और क्लस्टर
- विकृति: यदि कुछ वलय अधूरे हों या बाहरी जोड़ असमान हों, तो आकृति गोले से थोड़ा हटकर खिंच जाती है या चपटी हो जाती है।
- सामूहिक दोलन: गलियारा-जाल पूरे नाभिक के “श्वास” और “डगमग” जैसे मोड सम्भव करता है; ये निम्न-ऊर्जा सामूहिक उत्तेजनाएँ तथा विराट अनुनाद हैं।
- क्लस्टर: हल्के नाभिकों में विशेष रूप से दृढ़ स्थानीय गलियारे अल्फ़ा-क्लस्टर जैसी उप-संरचनाएँ बना सकते हैं।
उपमा: कई बिंदुओं पर तनी ढोलक-झिल्ली एक साथ लहर भी बनाती है और स्थानीय चोटों का उत्तर भी देती है; दोनों मिलकर तान तय करते हैं।
VI. समस्थानिक और स्थिरता-घाटी
- एक ही तत्व के लिए न्यूट्रॉन संख्या बदलने से जाल का संतुलन और गलियारों की टोपोलॉजी बदलती है; नतीजा स्थिरता में बदलाव होता है।
- बहुत कम या बहुत अधिक न्यूट्रॉन कुछ स्थानों पर “ढीली कुंडी” छोड़ देते हैं; नाभिक β-विघटन जैसी राहों से स्वयं समायोजित होकर अधिक स्थिर अनुपात की ओर बढ़ता है।
- अधिकांश स्थिर नाभिक स्थिरता-घाटी के आस-पास मिलते हैं।
उपमा: पुल में गर्डर और केबल का तालमेल ठीक होना चाहिए; बहुत कम या बहुत अधिक होने पर पुल हिलता है।
VII. हल्के संलयन और भारी विखंडन की ऊर्जा-लेखा
- संलयन: दो “पुल-जाल” मिलकर बड़ा और गलियारा-कुशल जाल बनाते हैं, कुल तना-लंब घटता है; बचत विकिरण और गतिज ऊर्जा के रूप में निकलती है।
- विखंडन: बहुत जटिल जाल को दो सघन उप-जालों में बाँटना भी कुल लंबाई घटाकर ऊर्जा छोड़ देता है।
- साझा मूल: दोनों में “गलियारा-लंबाइयों × तनन” का पुनः बँटवारा होता है।
उपमा: दो छोटी जालियाँ जोड़कर एक फ़िट जाली बनाना, या बहुत खिंची जाली को दो उपयुक्त हिस्सों में बाँटना—ठीक से करें तो “रस्सी बचती है”।
VIII. विशिष्ट उदाहरण और विशेष स्थितियाँ
- प्रोटियम (हाइड्रोजन-1): अकेला प्रोटॉन; कोई अंतर-न्यूक्लॉन गलियारा नहीं।
- हीलियम-4: चार न्यूक्लॉनों का “न्यूनतम पूर्ण वलय”; कठोरता अधिक।
- लौह के आस-पास: प्रति न्यूक्लॉन औसत “गलियारा-खर्च” न्यूनतम, समग्र स्थिरता अधिकतम।
- हेलो नाभिक: कुछ न्यूट्रॉन बहुत बाहर फैल जाते हैं, मानो घने कोर-जाल पर हल्का वस्त्र हो।
IX. मुख्यधारा चित्र से संगति
- “मजबूत अंतःक्रिया का अवशिष्ट नाभिकीय बल” ↔ “अंतर-न्यूक्लॉन तनन-गलियारे”।
- “ग्लूऑन विनिमय” ↔ “गलियारों में मरोड़/सिलवट पुंजियों का प्रवाह”।
- “पास में प्रतिकर्षण – बीच में आकर्षण – दूर पर लोप” ↔ “कोर की शीयर-लागत – न्यूनतम-लागत गलियारा – दूर-क्षेत्र का समलीकरण”।
- “खोल, जादुई संख्याएँ, युग्मन, विकृति, सामूहिक मोड” ↔ “वलय-क्षमता, भराई-सीढ़ियाँ, बनावट-मेल, जाल-ज्यामिति और स्पंदन”।
X. संक्षेप में
नाभिक वह स्व-समर्थित जाल है जिसमें नोड न्यूक्लॉन हैं और किनारे तनन-गलियारे। स्थिरता, विकृतियाँ, स्पेक्ट्रा और ऊर्जा-मुक्ति—सब इस जाल से पढ़े जा सकते हैं: नोड-ज्यामिति, गलियारों की कुल लंबाई और तनन, तथा ऊर्जा सागर की प्रत्यास्थ प्रतिक्रिया। यह प्रत्यक्ष चित्र स्थापित तथ्यों को नहीं बदलता; उन्हें अधिक दृश्य “ऊर्जा-लेजर” पर रखता है और हाइड्रोजन से यूरेनियम तक, संलयन से विखंडन तक की रैखिक कड़ी साफ करता है।
XI. रेखाचित्र

हर तत्व की नाभिकीय रचना अलग होती है; संकेत के लिए छह छोटे वलयों का उपयोग किया गया है।
दृश्य घटकों की कुंजी:
- न्यूक्लॉन चिह्नांकन
- मोटे काले समकेन्द्रित वलय न्यूक्लॉन की बंद, स्व-समर्थित संरचना दिखाते हैं; अंदर के छोटे वर्ग और छोटे चाप फेज-लॉक मोड और निकट-क्षेत्र की बनावट सूचित करते हैं।
- वैकल्पिक दो वलय-शैलियाँ प्रोटॉन और न्यूट्रॉन अलग करती हैं:
- प्रोटॉन (आरेखों में लाल): अनुप्रस्थ काट में “बाहर अधिक-मजबूत/अंदर अपेक्षाकृत-कमजोर” बनावट।
- न्यूट्रॉन (काला): परस्परपूरक द्वि-पट्टियाँ जिनके अंदर/बाहर के योगदान विद्युत एकध्रुवीय रूप को निरस्त करते हैं।
- अंतर-न्यूक्लॉन गलियारे (अर्धपारदर्शी चौड़ी-पट्टी जाल)
- पड़ोसी न्यूक्लॉनों को जोड़ती चौड़ी धनुषाकार पट्टियाँ तनन-गलियारे हैं, जो पारंपरिक “रंग-फ्लक्स ट्यूब” के तुल्य हैं।
- ये स्वतंत्र नयी वस्तुएँ नहीं हैं; ये प्रत्येक न्यूक्लॉन के अपने गलियारों की पुनर्संयोजन-वृद्धि हैं, जिन्हें ऊर्जा सागर नाभिकीय पैमाने पर न्यूनतम-लागत चैनल के रूप में खोलता है।
- पट्टियाँ त्रिभुज–छत्तेदार विन्यास बनाती हैं; यही मध्यम दूरी के आकर्षण और संतृप्ति की ज्यामितीय जड़ है (प्रत्येक न्यूक्लॉन सीमित संख्या और कोणों के जोड़ ही सह सकता है)।
- छोटे पीले दीर्घवृत्त (ग्लूऑन-जैसी पुंजियाँ): प्रत्येक गलियारे पर युग्म/श्रृंखला के रूप में चिह्न, जो चैनल के भीतर पुंज-प्रवाह दर्शाते हैं।
- उथला नाभिकीय कुण्ड और समदिशता (बाहरी तीर-वृत्त)
महीन तीरों का घेरा समय-औसत में लगभग समदिश “उथला नाभिकीय कुण्ड” दिखाता है (द्रव्यरूप):- निकट-क्षेत्र में दिशात्मक बनावट रहती है;
- दूर-क्षेत्र माध्यम के प्रत्यावर्तन से समल होता है और गोलकीय मार्गदर्शन की ओर झुकता है।
- मन्द-रंग का केंद्रीय क्षेत्र
कई गलियारों का केंद्र पर अभिसरण जाल की समग्र कठोरता दिखाता है; यहीं सामूहिक स्पंदन (विराट अनुनाद) सबसे आसानी से उद्दीप्त होते हैं और यही खोल/जादुई-लक्षणों का एक स्रोत है।
कॉपीराइट व लाइसेंस (CC BY 4.0)
कॉपीराइट: जब तक अलग से न बताया जाए, “Energy Filament Theory” (पाठ, तालिकाएँ, चित्र, प्रतीक व सूत्र) का कॉपीराइट लेखक “Guanglin Tu” के पास है।
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अनुशंसित श्रेय प्रारूप: लेखक: “Guanglin Tu”; कृति: “Energy Filament Theory”; स्रोत: energyfilament.org; लाइसेंस: CC BY 4.0.
पहला प्रकाशन: 2025-11-11|वर्तमान संस्करण:v5.1
लाइसेंस लिंक:https://creativecommons.org/licenses/by/4.0/